धारचूला(पिथौरागढ़)। कोविड के कारण दो साल बाद दारमा के ग्राम बौन मे प्रत्येक 5 वर्ष में बृहद रूप से मनाई जाने वाली पूजा (मेला) का समापन हुआ। पूजा में देश के विभिन्न प्रांत से प्रवासी परिवार पहुचे l गांव की बेटियां और दामाद भी पूजा में शामिल हुए, जिन्हें विशेष सम्मान दिया गया।

पूजा का प्रथम दिन बहुत ही हार्षोउलास का माहौल रहा l पुरे जोश एवं साज सज्जा के साथ युवा वर्ग कुछ बुजर्गों के साथ आलम (पवित्र वृक्ष) लेने के लिए पैदल 9 किलो मीटर दूर गलछिन बालिंग पहुंचे l जहाँ से तीन आलम ( पवित्र वृक्ष ब) को लेकर आते समय ग्राम बालिंग और दुग्तु वासियों द्वारा परंपरागत स्वागत एवं युवाओं का चाय पानी, नास्ते के साथ से स्वागत किया।

और बौन के ठाण्डी के 3 किलोमीटर की कठिन उतार चड़ाव को पार करते हुए रुंगलिंग धार मे पहुँचने पर गाँव के युवा महिलाओं ने गर्मजोशी के साथ चाय- पानी नास्ते से स्वागत किया, फिर च्युति धार मे जहाँ सभी गाँव वासियों के साथ इंतजार कर रहे थे स्वागत कर परंपरागत कतार मे नाचते हुए स्यागसै देवस्थल तक उत्साह वर्धन करते हुए पहुचाया जहाँ युवाओं ने तीनो आलम ( ध्वज वृक्षों) को अपने कंधे पर उठाकर जयकारे के साथ स्थापित किया l पुजारी किशन सिंह बोनाल ने विधिवत पूजा अर्चना के साथ सब की खुशहाली की प्रार्थना की l देर रात को सभी अतिथियों के साथ गाँव वासियों के साथ सामूहिक भोज किया गया l ग्राम प्रधान बौन सपना देवी ने बताया कि इस बीच गाँव के प्रवासी युवा जो पूजा के लिए आ रहे उनकी मृत्यु की दुःखद ख़बर मिलने पर उसके चिर शांति हेतु एक दिन का संपूर्ण कार्य को स्थगित किया गया।

बौन निवासी हरक सिंह ने बताया कि इस बीच दूर- दूर से आये 150 बेटियां और दामादों को लोगों स्मृति भेंट कर सम्मानित किया गया । और ये पूजा कार्यक्रम 5 दिनों तक चली। और युवाओं और महिलाओं के लिए वॉलीबॉल, कुर्सी दौड़ एवं रस्सा- कस्सी आदि खेलों का आयोजन किया गया। जिसमे महिलाओं का रस्सा- कस्सी खेल बहुत ही रोमांच और आकर्षक रहा l

पूर्व आईएफएस एडीजी प्रोजेक्ट टाइगर बिशन सिंह बोनाल ने बताया कि स्यांग सै पूजा के बाद हया च्युति- गबला देव की पूजा का आयोजन परंपरागत रूप से किया गया l इस पूजा मे पुरे गाँव को दो भाग मे 1- यहार जन जो गबला देवस्थल मे तथा 2- पहार जन जो च्युति देविस्थल मे पूजा अर्चना करते है l पूजा अर्चना के बाद बुजुर्गों द्वारा पूर्व निर्धारित स्थल मे गबला देव एवं च्युति देवी का मिलन ( विवाह स्वरूप) संपन्न की जाती है l तत्पश्चात गबला देव की प्रांगण मे नगाड़े के साथ कतार मे नाचते हुए पहुँचते हैं l उसी प्रांगण मे विलुप्त खेल “छिलो छामु” (गोल पत्थर)जिसमे नौ गोल पत्थर को क्रमशः वजन के साथ गोलाई मे खड़े अग्रेतर खिलाडी को फैंक कर खेला जाता है। खेलने के पश्चात पूजा समापन किया जाता है l
सुंदर सिंह बौनाल् कहते है कि पूर्व मे च्युति- गबला पूजा जिसे देव और देवी के विवाह के रूप में संपन्न की जाती है शायद ही कही और होता हो, जिसमे मे सरीक होने के लिए पूरे चौदह गाँव के लोग इंतजार करते थे l पर 1979 से दांतू गबला मेला के आयोजन के पश्चात कुछ शिथिल सा हो गया है फिर भी इसका बहुत महत्व् है l
बिशन सिंह बौनाल पूर्व आईएफएस एडीजी और रं कल्याण संस्था केन्दीय अध्यक्ष ने बताया कि बुजुर्गों द्वारा स्थापित वर्षों से मनाई जा रही परंपरागत पूजा प्रत्येक वर्ष मनाई जाती हैं। पर पांच वर्ष मे भब्य रूप से पूजा आयोजन करने का मुख्य उदेश्य दूर दराज मे बसे भाई विरदारों के साथ मिलने का अवसर, आपसी भाई चारा बढ़ाना, एक दूसरे की संस्याओं को साझा करना एवं गाँव की प्रगति के लिए सामूहिक विचार विमर्श करना है।