देहरादून। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विश्व प्रसिद्ध विज्ञानी प्रो (डॉ दुर्गेश पंत , महानिदेशक उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् ने झाझरा स्थित जनजातीय दून संस्कृति स्कूल में प्रदेश की मृत प्रायः वन राजी भाषा की शिक्षा एवं अध्ययन केंद्र का उद्घाटन किया।

उन्होंने इस मिशन हेतु पूर्व सांसद श्री तरुण विजय को बधाई देते हुए कहा कि हज़ार भाषणों से बेहतर है एक ठोस कदम मंजिल की और बढ़ाना – प्रदेश के सुदूर धारचूला चम्पावत क्षेत्र के वन राजी समाज की कुल जनसँख्या ९०० के लगभग है जो विश्व की तीव्र गति से लुप्त हो रहीं जनजातियों में गिनी गयी है,. इनकी भाषा वन राजी या राजी आज तक किसी ने लिपिबद्ध नहीं की. केवल मोदी शासन में उनकी जनजातीय दिशा दृष्टि से प्रेरित होकर पूर्व सांसद श्री तरुण विजय ने मृत प्रायः वन राजी भाषा के पुनरुज्जीवन, शिक्षा पाठ्यक्रम निर्धारण , शब्दकोष निर्माण तथा आर्टफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा उनके ध्वन्यांकन का मिशन अभिकल्पित किया। यह अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है जिसके लिए विज्ञान परिषद् पूरी सहायता करेगी।

इस अवसर पर श्रीमती रजनी देवी राजवर ने वन राजी भाषा की अध्यापिका के रूप में कार्य प्रारम्भ कर सम्पूर्ण प्रदेश में वन राजी समाज में वन श्रमिक से अध्यापक बनने का गौरव प्राप्त किया उल्लेखनीय है कि झाझरा का जनजातीय विद्यालय उत्तराखंड में वन राजी भाषा के अध्ययन और राजी में शिक्षा प्रारम्भ करवाने वाला पहला विद्यालय बना है. प्रो दुर्गेश पंत ने श्रीमती रजनी देवी राजवर द्वारा ब्लैक बोर्ड पर अंकित राजी शब्दों के साथ स्वयं देवनागरी में स्वागत लिख कर इस केंद्र का उद्घाटन किया और वन राजी छात्रों को अपनी भाषा पढ़ने हेतु प्रेरित किया.

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” हमारे गीत खो गए- कुछ नहीं बचा ”

पिथौरागढ़ के एक अत्यंत पिछड़े और सुदूर गाँव किमखोला निवासी रजनी देवी राजवर मूलतः सरकारी कार्यों में मार्ग और वन श्रमिक का कार्य करती थीं. श्री तरुण विजय उनको अपने पुत्र के साथ देहरादून जनजातीय विद्यालय में पढ़ने हेतु लाये तो उनके लिए देहरादून का भव्य स्वरुप, कम्प्यूटर शिक्षा मानों अमरीका जैसा था. उन्होंने यहाँ पहली बार ईंधन गैस के सिलेंडर और चूल्हे देखे. गाँव में कक्षा आठ तक पढ़ीं रजनी देवी ने आज मातृ भाषा दिवस पर बताया कि उनके समाज के गीत और भाषा विलुप्त हो रहें हैं, कुछ नहीं बच रहा है. इसलिए यहाँ वन राजी शिक्षा के लिए अलग से व्यवस्था का हिस्सा बनने और वन राजी अध्यापिका का दर्जा पाकर वे बहुत प्रसन्न हैं. प्रो दुर्गेश पंत ने कहा कि यदि किसी समाज के गीत और कथाएं ही समाप्त हो रही हों तो यह बहुत दारुण स्थिति का परिचायक है. इसके समाधान और वन राजी शब्द कोष, भाषा पुनरुज्जीवन हेतु वे सब प्रकार से सहायता करेंगे