पिथौरागढ़। मनोविदलता (सीजोफ्रेनिया) एक गम्भीर मानसिक विकार है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के विचार, प्रत्यक्षीकरण, भावना, गति एवं व्यवहार में अत्यधिक अवरोध उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति दूसरों पर शंका और सन्देह करने लगता है। व्यक्ति को स्वयं के विषय में पता नहीं होता है वह अकेले में बात और
इशारे करता है तथा उसे आवाजें सुनायी पड़ती हैं। उसे लगता है कि लोग उसके विषय में बात कर रहे हैं।
साथ ही साथ व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर घूमता रहता है। व्यक्ति सुख और दुःख की
अनुभूति नहीं कर पाता है।
अक्सर यह भी देखा गया समुदाय में मनोविदलता बीमारी से सम्बन्धित जानकारी के अभाव में लोग इस बीमारी को जादू टोना समझने लगते है और झाड़ फूंक के माध्यम से उपचार कराना शुरु कर देते है। परिणामस्वरुप बीमारी की गम्भीरता बढ़ती जाती है व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता जैसे उसकी दैनिक दिनचर्या के साथ ही साथ उसका समाजिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। विडम्बना की बात तो यह है कि लोग इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को पागल कहते हुये उसका तिरस्कार करने लगते हैं। व्यक्ति के परिवार पर व्यक्ति के देख-रेख का भार के साथ ही समाजिक और आर्थिक भार पड़ने लगता है।
इसी क्रम में आम जन मानस में मनोविदलता (सीजोफ्रेनिया) के विषय में जागरुकता को फैलाने हेतु 24 मई को विश्व सीजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। इस गम्भीर बीमारी बीमारी का मूलभूत कारण बता पाना आसान नहीं है परन्तु संभवतः इसमें तनाव और अनुवांशिकता का पात्र हो सकता है। वास्तविकता तो यह है इस बीमारी का पूर्ण उपचार मनोचिकित्सा द्वारा सम्भव है।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधार पर यह पाया गया देश में मनोविदलता से ग्रसित व्यक्तियो 0.42 प्रतिशत है तथा 80 प्रतिशत लोगों को मनोचिकित्सकीय उपचार नहीं मिल पा रहा है। इसी कम में उपचार की कमी को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु और एम्स ऋषिकेश के मनोरोग विभाग ने कर्नाटक तथा उत्तराखण्ड सरकार के सहयोग से तीन वर्षीय ग्रामीण मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, “नमन परियोजना” की शुरुआत की है। वर्तमान समय में यह परियोजना पायलट परियोजना के रुप में दो तालुको क्रमशः बेलुर तालुक, हासन जिला, कर्नाटक राज्य और मुनस्यारी तालुक, पिथौरागढ़ जिला, उत्तराखण्ड राज्य में कियान्वित की जा रही है। इस परियोजना के तहत मानसिक स्वास्थ्य सवंर्द्धन, रोकथाम और, उपयार और पुर्नवास से सम्बन्धित सेवाएं प्रदान की जायेगी। तालुकों में परियोजना क्रियान्वयन के सम्बन्ध में तीन वर्ष हेतु परियोजना के अधीन कर्मचारियों की नियुक्ति की जा रही है जिनके माध्यम से सम्पूर्ण तालुक की जनसंख्या का सर्वेक्षण करते हुये उन तक मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाना ही कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है। कार्यक्रम की सफलता के परिणाम के आधार पर उपरोक्त कार्यक्रम को देश भर में समस्त तालुकों में कियान्वित करने की योजना है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सशक्त बनाया जा सके।
तीन वर्षीय कार्यक्रम को कियान्वित करने के लिए वित्तीय सहायता आश्रया हस्ता ट्रस्ट, बेंगलुरु के माध्यम दी जा रही है। इसमें मोहित शुक्ला, मनोसमाजिक कार्यकर्ता, नमन परियोजना, निम्हान्स बेंगलुरु, डॉ.नवीन कुमार सी, आचार्य, प्रधान अन्वेषक, नमन परियोजना, निम्हान्स, बेंगलुरु, डॉ० विक्रम सिंह रावत, अपर आचार्य, सह अन्वेषक, नमन परियोजना, एम्स, ऋषिकेश और डॉ. ललित भट्ट, मानसिक स्वास्थ्य नोडल, पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड दे रहे हैं।