पिथौरागढ़। साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से एलएसएम राजकीय महाविद्यालय पिथौरागढ़ की छात्राओं द्वारा सावित्री बाई फुले पाठक मंच का गठन किया गया है। मंच की पहली बैठक में पिछले दिनों समय साक्ष्य से प्रकाशित महेश चंद्र पुनेठा के कविता संग्रह ‘अब पहुंची हो तुम’ की कविताओं के पाठ और उन पर चर्चा से हुई। छात्राओं ने आम राय से तय किया कि कॉलेज में ऐसा माहौल हो, जहां साथ बैठकर अनौपचारिक रूप से कुछ नया पढ़ और उस पर चर्चा कर सकें।

पहली बैठक में कॉलेज के गार्डन में गोल घेरे में बैठकर कवि महेश चंद्र पुनेठा के कविता संग्रह “अब पहुंची हो तुम” से ‘छोटी सी बात’,’छुपाना और उघाड़ना’,’परंपराएं’,’प्रार्थना’,’उसके पास पति नहीं है’,’खिनुवा’,’मेरी रसोई मेरा देश’,’गांव में सड़क’, ‘नचिकेता’, ‘उसका लिखना’,’कुएं के भीतर कुएं’ ,’मां की बीमारी में’ आदि कविताओं का पाठ किया गया।सभी छात्राओं ने एक-एक करके कविता पाठ किया और उस पर अपनी बात रखी।सभी के लिए इस तरह एक साथ पढ़ना नया अनुभव रहा।इसमें शामिल रही बी ए द्वितीय वर्ष की छात्रा मनीषा कहती है कि कवि महेश चंद्र पुनेठा की कविताओं से पता चलता है कि वह अपने समाज से बहुत नजदीक से जुड़े हैं। वह जिन विषयों पर कविता लिख देते हैं, हम उनके बारे में सोचते भी नहीं। पता चलता है कवि कितने नजदीकी से समाज और इंसानों से जुड़े हैं। वह जीवन में रचनात्मकता चाहते हैं। उनकी कविताएं जीवन संघर्ष, प्यार और दर्द को महसूस कराती हैं।बी ए तृतीय सेमेस्टर की छात्रा एकता कहती हैं कि मुझे खुशी है कि हम एक मंच की शुरुवात कर रहे हैं,जो आने वाले समय में पढ़ने-पढ़ाने की संस्कृति को बढ़ाने में मदद करेगा । यह प्रसंशनीय है कि इसकी शुरुआत चर्चित कवि महेश पुनेठा की पुस्तक से हो रही है।कवि के लेखन में पहाड़ का दर्द,महिलाओं में काम का अतिरिक्त बोझ ,पहाड़ में विकास और पलायन व्यक्त हुआ है । यह किताब उन सभी की अपनी आवाज है,जो वर्तमान परिदृश्य में हाशिये में हैं। ज्योति कुमारी कहती हैं कि संग्रह की कविताएं एक से बढ़कर एक हैं,जो हमें सोचने और खुद में सुधार करने का नया मौका देती हैं।

काजल धामी ने आशा व्यक्त की कि उन्हे लिखने का बहुत शौक है। यह मंच उनके लिए नई संभावनाएं लेकर आएगा।बी ए तृतीय सेमेस्टर की छात्रा शीतल ने कविताओं पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा *पुनर्वास* नामक शीर्षक से प्रकाशित कविता उन लाखों ,करोड़ों लोगों की दबी आवाज को एक ऊंचा स्वर देती है,जिन्हे सरकार ने बड़े-बड़े लालच दिखाकर उनके जल,जंगल,जमीन,संस्कृति,घरों और यादों से कही दूर पटका है। वह कहती हैं कि जिन्हें उपेक्षित किया जाता हैं समाज द्वारा कवि अपनी कलम से उसे नई पहचान देते हैं।

भगवती अपनी बात रखते हुए कहती हैं कि इस कविता संग्रह का शीर्षक खुद में गांवों की दुर्दशा का ही चित्रण करता है कि कैसे गांव खाली होने के बाद वहां सड़क पहुंच रही है । अब सड़क ने उन खनन माफियाओं को वहां खड़िया,लकड़ी ,वहां के जंगलों में कब्जा करने में मदद की।इस मौके पर काजल कुमारी, ,काजल आर्या, प्रियंका, चंद्र कला जोशी आदि छात्राओं ने भी कविताओं का पाठ करते हुए उन पर अपने विचार व्यक्त किए।