हरिद्वार। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और अनियमित दिनचर्या खानपान से छोटी छोटी समस्याएं भी गंभीर रूप ले रही हैं। पेशाब से सम्बन्धित समस्याएं भी अब आम होती जा रही हैं। इन्हीं समस्याओं में प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना भी एक गंभीर रूप लेता जा रहा है। तुरंत आराम के लिए हम ना जाने कितने चिकित्सकों का चक्कर लगाते हैं लेकिन फिर भी इन समस्याओं से हमें निजात नहीं मिल पाती है। आधुनिक विज्ञान यानि एलोपैथी के चिकित्सक भी अब जीवन शैली में परिवर्तन और प्राकृतिक उपचार पर ज्यादा जोर देने लगे हैं। ऐसे में विशेषज्ञ आयुर्वेद चिकित्सकों की मांग लगातार बढ़ रही है। आयुर्वेद विज्ञान में वर्णित मूत्रकृच्छ यानि मूत्र करने में जलन कठिनाई और मूत्राघात प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षणों से मेल खाते हैं। मूत्रकृच्छ में यूरिन पास करने में दर्द होता है जबकि मूत्राघात में पेशाब का पूरी तरह से बंद या रुक-रुक कर आना होता है। आयुर्वेद में विभिन्न विकारों सहित पेशाब से संबंधित विकारों के इलाज का एक लंबा इतिहास रहा है। आयुर्वेद में गोक्षुर (गोखरू), जिसका वानस्पतिक नाम ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस है, का उपयोग पारंपरिक रूप से मूत्रजननांग संबंधित विकारों के इलाज में किया जाता रहा है। आर्युवेद विशेषज्ञ डॉ अवनीश उपाध्याय बताते है की वरुण (क्रेटेवा धर्मियोसा) और पुनर्नवा (बोएरहाविया डिफ्यूसा) दोनों को बीपीएच के लक्षणों के लिए प्रभावी पाया गया है। विभिन्न नैदानिक ​​परीक्षणों में इन दोनों का विशेष रूप से जननांग-मूत्र पथ से संबंधित विकारों में सकारात्मक परिणाम मिला है। साथ ही शिलाजीत का विशेष रूप से जननांग-मूत्र रोग में उपयोग किया जाता है। यव-क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो पोटेशियम कार्बोनेट का प्राकृतिक रूप होता है, और प्रोस्टेट के लिए विशेष उपयोगी होता है। खस जिसे हम उशीर के नाम से जानते हैं इसका उपयोग कई रोगों जैसे मुंह के छाले, बुखार, फोड़ा, मिर्गी, जलन, सिरदर्द और प्रोस्टेट का बढ़ना आदि के लिए किया जाता है।
स्वेत चंदन चिंता, मानसिक तनाव, सिर दर्द, प्रोस्टेट का बढ़ना, क्रोध नकारात्मकता और अवसाद की स्थिति में उपयोगी होता है। खदिर या कत्था पारंपरिक रूप से एक कामोद्दीपक के रूप में और बढ़े हुए प्रोस्टेट को कम करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। खदिर से बनी एक महत्वपूर्ण दवा सुपारी पाक का इस्तेमाल सभी प्रकार के मूत्र विकारों, जननांग विकारों और स्त्री रोगों में बहुत महत्वपूर्ण होता है। शतावरी सूजन को दूर करने में मदद करता है और पेशाब में सुधार करता है – जिसमें मूत्रकृच्छ भी शामिल है। पुनर्नवा सभी मूत्र समस्याओं जो प्रोस्टेट की बीमारियों के कारण होती हैं, को दूर करता है।
डॉ अवनीश उपाध्याय आगे बताते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में निर्मित बहुत सी औषधियां जैसे चंद्रप्रभा वटी, वरुणादि वटी, कांचनार गुग्गुल आदि पेशाब और जननांग से संबंधित विकारों में बहुत उपयोगी होते हैं। चंद्रप्रभा वटी शुद्ध शिलाजीत, शुद्ध गुग्गुलु, कर्पूर, मुस्ता, चित्रक, त्रिफला, त्रिकटु, सैंधव, दालचीनी, वंसलोचन आदि से निर्मित होता है जिसके सेवन से जननांग-मूत्र पथ से संबंधित विकारों में सकारात्मक परिणाम मिलता है। वरुण (क्रैटेवा नूरवाला) का आयुर्वेद में प्रोस्टेट वृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है। वरुणादि वटी गैर-हार्मोनल आयुर्वेदिक दवा है और वैज्ञानिक परीक्षणों में यह प्रोस्टेट वजन को कम करके प्रोस्टेट ग्रंथि के इलाज और मूत्र प्रवाह दर में सुधार के लिए प्रभावी पाया गया है। कांचनार गुग्गुल बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्रंथि के लिए एक प्रभावी उपचार है। इसका अन्य सप्लीमेंट्स जैसे वरुणादि वटी, शिलाजीत कैप्सूल के साथ उपयोग करने से कुछ दिनों के भीतर ही परिणाम दिखाई देता है।
डॉ अवनीश उपाध्याय कहते हैं कि आयुर्वेद अब एक एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के रूप में स्थापित हुआ है और विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक परीक्षण लगातार गतिमान हैं। एक अध्ययन में करी पत्ता (मुर्रया कोएनिगी) और गोखरू (ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस) प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षणों को दूर करने में मदद करता है, ग्रंथि के आकार को कम करता है, मूत्र प्रवाह में सुधार करता है और मूत्राशय को लगभग पूरी तरह से खाली करने में मदद करता है जिससे मूत्र प्रतिधारण कम हो जाता है।
डॉ अवनीश उपाध्याय बताते हैं कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा 2017 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में होने वाली मौतों में गैर संचारी रोगों का हिस्सा 1990 में लगभग 40 प्रतिशत था, जो 2016 में बढ़ कर लगभग 62 प्रतिशत हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में बताया था कि भारत में लगभग 58 लाख लोग हर साल इन रोगों से मौत का शिकार बन जाते हैं। इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा अब समन्वित चिकित्सा पद्धति पर जोर दिया जा रहा है और चिकित्सा की मूल धारा के साथ आयुर्वेद और योग को जोड़कर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर यानी बड़े-बड़े चिकित्सालयों पर बोझ को कम करने के लिए आयुष्मान भारत आदि योजनाओं के द्वारा आयुष हेल्थ एंड वैलनेस केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। जहां जीवनशैली से जुड़ी विभिन्न बीमारियों को प्राथमिक स्तर पर ही काबू पाया जा सकेगा।