धारचूला/पिथौरागढ़। धारचूला के दारमा और व्यास घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सितम्बर अंतिम सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह में बर्फबारी के कारण ठंड काफी बढ़ गई है। जिसे देखते हुए दारमा घाटी के 14 गांव और व्यास घाटी के 7 गाँव के लोगो के साथ साथ बुग्याल में भेड़ बकरियों को चराने गए भेड़पालक भी निचली घाटियों की ओर लौटने लगे हैं।

बता दें हिमांचल प्रदेश और धारचूला तहसील के स्थानीय भेड़पालक 6 महीने के लिए दारमा घाटी के पंचाचूली, दावे और विदांग और व्यास घाटी के ज्योलीकांग बुग्याल आदि 10 हजार से 14 हजार की ऊँचाई वाले बुग्यालों में जाते हैं। ठंड बढ़ने के बाद सभी भेड़पालक वापस निचली घाटियों में आ जाते है। गुरुवार को हिमांचल निवासी भेड़पालक पंजाब सिंह ने बताया कि वह 45 सालों से 6 महीने दारमा घाटी और 6 महीने टनकपुर में बिताते हैं। उन्होंने बताया कि दारमा से लगभग एक महीने अपने भेड़ो के साथ पैदल चलकर टनकपुर पहुंचेंगे। वही दांतू के भेड़पालक नैन सिंह दताल ने वे भी 40 सालों से भेड़पालन कर रहे हैं। पहले स्थानीय लोगो के पास 30 हजार से अधिक भेड़ें हुआ करती थी। अब इस संख्या में काफी कमी आ गई है। भेड़पालन में अधिक मेहनत और कम आमदनी के कारण बहुत से भेड़पालक हर साल अपनी भेड़ और बकरियां बेच रहे है शासन प्रशासन द्वारा भी भेड़पालक की समस्याओं में ध्यान नही देने से भी लोग अपनी पारम्परिक व्यवसाय छोड़ रहे है।सोबला निवासी आन सिंह रोकाया का कहना है कि सरकार को सीमान्त की भेड़पालको के विकास के लिए समय समय से भेड़, बकरियां,पशुओं पंजीकरण करना चाहिए और समय समय पर शिविर लगाकर वैज्ञानिक विधि से भेड़पालन की जानकारी देनी चाहिए। समय से पशुओं का पंजीकरण नही होने से बर्फबारी और किसी प्रकार की आपदा होने पर पशु स्वामियों को समय से मुआवजा नही मिलता है। मुआवजे के लिए कार्यालयों के चक्कर में ही उनका महीनों का सेनिकल जाता है। शासन प्रशासन भेड़पालको की मूल समस्याओं का समाधान कर दे तो ये लोग फिर से पारम्परिक व्यवसाय की और लौट सकते है।