पिथौरागढ़। प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण को “सीमांत की आवाज” संगठन आगे आया है। संगठन नौले धारों की सुरक्षा को लेकर लोगों को जागरूक करेगा। पहाड़ की सबसे बड़ी विशेषता यहां के शीतल जल देने वाले जल स्रोत हैं। भले ही सरकार की पेयजल योजना बन चुकी है परंतु आज भी अधिकांश लोग इन जल स्रोतों के जल को महत्व देते आए हैं। अवैज्ञानिक विकास और जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति उदासीन रवैया के चलते इसकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है। इसके संरक्षण के लिए सीमांत की आवाज द्वारा उठाई आवाज को अब पंख लगने लगे हैं। संरक्षण के लिए प्रारंभ की गई पहल से लोग जुड़ने लगे हैं। सोनू पाण्डेय के नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रम में युवा कवि ललित शौर्य ने कहा कि वैज्ञानिकों के अनुसार जहां पर आज नगर है वहां पर हजारों वर्ष पूर्व सरोवर था। इसी का परिणाम है कि यहां पर प्राकृतिक जलस्रोतों की भरमार थी। शहर के अवैज्ञानिक विस्तार से 90 फीसद जलस्रोत लुप्त हो गये हैं। शेष बचे जलस्रोत पर संकट के बादल छाए हैं। नगर की 25 फीसद जनता आज भी इन स्रोतों पर निर्भर है। पवन नाथ ने कहा कि प्रकृति हमें स्वच्छ जल उपलब्ध कराती है। लेकिन आज के समय में लोग प्राकृतिक जल स्रोतों की स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी से विमुख हो रहे हैं। नौने धारों को भूल गये है, तभी जल संकट प्रदूषित पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं। अमित कश्यप ने कहा कि पानी की बढ़ती कमी का समाधान जल स्रोत के संरक्षण से ही संभव है। पानी के बगैर धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए समय रहते लोगों को जल संरक्षण के प्रति सजग हो जाना चाहिए। कार्यक्रम लगातार जारी रहेगा कार्यक्रम में टीम के सभी सदस्य उपस्थित रहे।