कोलंबो। श्रीलंका में बुधवार को राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हो गया। पहली बार था जब राष्ट्रपति पद के लिए मुकाबला तीन उम्मीदवारों के बीच हुआ है। देश में अब तक के सबसे भीषण आर्थिक संकट से निपटने में सरकार की नाकामी के बाद लोगों के सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने के बाद देश छोड़कर भागे गोटबाया राजपक्षे के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद नए राष्ट्रपति के लिए यह चुनाव हुआ था। कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने इस चुनाव को जीतकर जनता को नई उम्मीद दी है। राष्ट्रपति पद के लिए मुकाबला रानिल विक्रमसिंघे, डलास अल्हाप्पेरुमा और वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के बीच था। एसएलपीपी के अध्यक्ष जी एल पीरिस ने मंगलवार को कहा था कि सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के अधिकतर सदस्य इससे अलग हुए गुट के नेता अल्हाप्पेरुमा को राष्ट्रपति पद के लिए और प्रमुख विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के पक्ष में थे। मगर रानिल विक्रमसिंघे हमेशा से रेस में सबसे आगे चल रहे थे। विक्रमसिंघे को 134 वोट मिले हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने मई में इस्तीफा दे दिया था तो विक्रमसिंघे को देश का पीएम चुना गया। इसके बाद जब गोटाबाया राजपक्षे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तो विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति चुना गया। श्रीलंका के संविधान के मुताबिक नया राष्ट्रपति अब पूर्व राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करेगा।
223 सदस्यों वाली संसद में दो सांसद नदारद रहे और कुल 219 वोट्स वैध करार दिए गए। 4 वोट्स ऐसे थे जिन्हें अवैध करार दिया गया। विक्रमसिंघे पहले दो बार राष्ट्रपति का चुनाव हार चुके हैं और अब वो देश के राष्ट्रपति बने हैं।
श्रीलंका में राष्ट्रपति का पद पहले भी खाली हुआ था, जब 1 मई 1993 को राष्ट्रपति आर प्रेमदासा की हत्या हुई थी। इससे पहले खबरें आई थीं कि नए राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए संसद 20 जुलाई को गुप्त मतदान करेगी। सूत्रों के मुताबिक, विक्रमसिंघे वर्तमान राष्ट्रपति पद के बाकी कार्यकाल को पूरा के लिए इस पद के लिए चुनाव लड़ेंगे। 9 जुलाई को विक्रमसिंघे ने खुद ये बात ट्वीट कर कही थी कि वो पीएम के पद से इस्तीफा देंगे ताकि ऑल पार्टी सरकार के लिए रास्ता खुल सके। श्रीलंका की एक प्रभावी सिंहली परिवार में जन्में विक्रमसिंघे पेशे से एक वकील हैं। सिर्फ 28 साल की उम्र में उन्हें उप-विदेश मंत्री का पद दिया गया था। उनकी काम करने की क्षमता ने बहुत कम समय में कई नेताओं को प्रभावित किया था। 5 अक्टूबर 1977 को विक्रमसिंघे को फुल कैबिनेट पद मिल गया और वो युवा मामलों के मंत्री बने। साल 1980 की शुरुआत तक उनके पास ये पद रहा। विक्रमसिंघे राजनीति में आगे बढ़ते जा रहे थे। साल 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति रानासिंघे प्रेमदासा को एक आत्मघाती हमले में लिट्टे आतंकियों ने मार दिया था। उनकी मौत के बाद प्रधानमंत्री डीबी विजीतुंगा को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। 7 मई को विक्रमसिंघे को पहली बार देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था।