पिथौरागढ़। लोक संस्कृति की परंपरा में आ रहे परिवर्तन और युवा पीढ़ी के गांवों से दूरी बनाने पर मेरो पहाड़ ट्रस्ट ने चिंता जताई है। ट्रस्ट के अध्यक्ष मयूख भट्ट का कहना है कि जिस तरह से लोक संस्कृति नगर में आयोजित होने वाले मंचों तक सिमट रही है उसने गांवों के उत्सवों को सूना कर दिया है।

मेरो पहाड़ ट्रस्ट के अध्यक्ष का कहना है कि पिथौरागढ़ जिले की सोरघाटी सहित अन्य हिस्सों में सातू आठूं पर्व बड़े धूमधाम के साथ तथा पारंपरिक रूप से मनाया जाता रहा है। यह पर्व मां पार्वती को गौरा दीदी और भगवान भोलेनाथ को भिना के रूप में जोड़कर आत्मीयता के बंधन में बांधता है।

गौरा- महेश्वर पूजन विधि विधान के साथ ही मूर्ति स्थापित करने से लेकर विसर्जन तक परंपरा के अनुसार होता है। कुछ वर्ष पूर्व तक आठूं पर्व मनाने सभी महिला-पुरुष शहरों से गांवों में आते थे। यह ऐसा अवसर होता था जब पलायन के कारण सूने गांवों में रौनक लौट जाती थी। अब सातू आठूं मेले की बड़े स्तर पर लगातार मंचीय प्रस्तुति के कारण लोगों ने गांवों की ओर लौटना कम कर दिया है। उनका कहना है कि मंचीय प्रस्तुति में लोग अपनी संस्कृति और पर्वों से जुड़ रहे हैं यह खुशी की बात है, लेकिन यह पर्व हमारे लिए केवल एक मनोरंजन के साधन न रह जाएं इसका भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा है कि गौरा-महेश्वर के विसर्जन के लिए भी विशेष दिन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।