पिथौरागढ़। जिला सत्र न्यायाधीश डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा ने विवाहिता की आत्महत्या के एक मामले की सुनवाई करते हुए धनबाद झारखंड निवासी एसएसबी जवान को पांच साल के कठोर कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई है। प्रेम विवाह करने वाली जवान की पत्नी ने मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से तंग आकर विवाह के महज दो माह छह दिन में ही फंदे से लटककर जान दे दी थी।
मामले के अनुसार झारखंड के रागामंटिया, धनबाद निवासी गणेश कुमार रजक और अनुराधा का 17 जुलाई 2015 में प्रेम विवाह हुआ था। शादी के बाद गणेश कुमार रजक अपनी पत्नी अनुराधा को लेकर डीडीहाट आ गया। 11वीं वाहिनी में तैनात गणेश ने रहने के लिए डीडीहाट कस्बे में किराए में कमरा लिया था। 22 सितंबर 2015 को अनुराधा ने अपनी साड़ी का फंदा बनाकर कमरे के भीतर आत्महत्या कर ली। इस मामले में मृतका के पिता अशोक लाल ने 11 अक्तूबर को गणेश कुमार के खिलाफ डीडीहाट कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई। मृतका के पिता का आरोप था कि गणेश कुमार ने उनकी पुत्री का उत्पीड़न किया था जिस कारण वह आत्महत्या के लिए मजबूर हुई थी। इस मामले में पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट डीडीहाट की अदालत से यह मामला जिला सत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। इस मामले की सुनवाई करते हुए जिला सत्र न्यायाधीश डॉ.ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा ने दोनों पक्षों और गवाहों को सुनने के बाद दोष सिद्ध करते हुए अभियुक्त गणेश कुमार रजक को आईपीसी की धारा 306 के तहत पांच वर्ष का कठोर कारावास और 25 हजार रुपये का अर्थदंड की सजा सुनाई गई। अर्थदंड जमा नहीं करने पर छह माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना होगा। धारा 498 क के अंतर्गत तीन साल के कठोर कारावास और 15 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई। अर्थदंड नहीं देने पर चार माह का अतिरिक्त कारावास भोगना होगा। दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। अभियोजन पक्ष की ओर से वरिष्ठ शासकीय अधिवक्ता प्रमोद कुमार पंत ने पैरवी की। प्रेम विवाह करने के महज दो माह छह दिन के भीतर आत्महत्या के लिए विवश हुई अनुराधा के पति को सजा सुनाने से पहले जिला सत्र न्यायाधीश डॉ.ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा ने उत्तराखंड न्यापालिका के किसी सदस्य द्वारा नारी व्यथा शीर्षक की कविता के अंश भी पढ़े।
मुझे बताओ जाऊं कहां, क्या धरा समा जाऊं यहां
बताओ मैं कहां सुरक्षित हूं, न घर में न बाहर में
मानवता शर्मसार होकर समा चुकी किसी गार में।।
कविता के अंश पढ़ने के बाद फैसले में उन्होंने कहा कि कविता को लिखने के लिए उनका न्यायिक विवेक विवश हुआ है।

