धारचूला(पिथौरागढ़) । दारमा घाटी चीन सीमा के धौली गंगा के पार बसे माइग्रेशन वाले सेला,चल,बोन,फिलम,सीपू गांव के ग्रामीणों के लिए आपातकाल में स्वास्थ्य सेवा चुनौती बन रही है।
रं कल्याण संस्था के केंद्रीय अध्यक्ष पूर्व आईएफएस अधिकारी बिशन बोनाल ने बताया कि इन गांवों के लिए संपर्क मार्ग तथा नदी में पुल तथा ट्रॉली नहीं होने से आपातकाल में संकट गहरा जाता है। चार पांच दिनों पूर्व गांव के रामकृष्ण बोनाल जिनको अचानक पैरालिसिस अटैक पड़ा था उनका पाँव काम नहीं कर पा रहा था। उनको लोगो ने कड़ी मशक्कत से डोली में उठाकर 4-5 किलोमीटर ग्रामीणों के द्वारा सड़क मार्ग तक आकर जिला अस्पताल तक पहुंचाया गया।
पूर्व में हैंड ट्रैक्टर से कार्य करने के दौरान मोहन सिंह को समय पर उपचार नहीं मिलने से उनका पैर काटना पड़ा था। बताया कि क्षेत्र में वाईफाई सेट भी खराब चल रहे हैं। गोरी गंगा के पार बसे सभी छह गांव आजादी के 75 वर्षों के बाद भी मोटर मार्ग से वंचित हैं।
सेला चल के बीच पुल भी नही है।बोन से फिलम को जोड़ने के लिए मोटर पुल तो बना है। लेकिन सम्पर्क मार्ग ना होने से वर्ल्ड बैंक के द्वारा बनाए गए चार करोड़ का पुल भी ग्रामीणों के लिए मददगार साबित नहीं हो रहा है। जबकी धौली गंगा के दूसरी और के गांव दर, बोगलिंग, नागलिंग, बालिंग, दुग्तु सौंन, दातू,और ढाकर सड़क मार्ग से जुड़ गए है।
बिशन सिंह बोनाल ने बताया कि रं कल्याण संस्था और दारमा दीलिंग सेवा समिति के द्वारा शासन औए प्रशासन को गाँव की समस्याओं को लेकर ज्ञापन दिया है। जिसपर अब तक कोई कार्यवाही नही हुई है।
ग्राम प्रधान सीपू शांति देवी और ग्राम प्रधान दांतू जमन सिंह दताल ने प्रशासन से मांग की है कि माइग्रेशन के छह माह के दौरान कम कम दो फार्मासिस्ट की नियुक्ति की जाय। जिससे कोई भी मेडिकल इमरजेंसी आने पर ग्रामीणों को राहत मिल सके।
दारमा के होम स्टे अध्यक्ष जयेंद्र सिंह फिरमाल ने बताया कि दारमा घाटी में कई पर्यटक स्थल होने के कारण स्थानीय और बाहरी पर्यटकों की आवाजाही होती रहती है। कभी भी कोई भी आपातकाल आने पर कोई स्वास्थ सुविधाएं नही होने से ग्रामीणों के साथ पर्यटकों को दिक्कतें होती है। इसलिए सरकार और प्रशासन को दारमा घाटी में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का कार्य करना चाहिए।